पंख
सपनों के पंख लगाये
बादलों को चीर
बेहेकति नदी की तरह
मेरी आकांक्षाएं आज उड़ रही है
सपनों के पंख लगाये,
ढूंड रही है, खुद को,
लाखों बदालों के बीच.
खुशियाँ झिलमिलाती हुई
झर्ना की तेज़ धार जैसी
दिल को भिगोये, उड़ रही है.
नीले आस्मां को चीर,
मेरी आकांक्षाएं आज उड़ रही है,
बुलंदी के बुलंद दरवाज़े को दस्तक
देती हुई मेरी आकांक्षाएं, आज उड़ रही है.
सूरज की तपती किरणों से तेज़
पर्वत के चट्टानों को चीर,
संपर्क के बेड़ियों को चीर,
गरजती बदालों में, पंख लगाये
मेरी आकांक्षाएं आज उड़ रही है,
ना कोई रोख, ना कोई बंधन.
सपनों की रंगोली सजाये,
किसी कवी की कविता की तरह,
किसी लेखक की सोंच की तरह,
मेरी आकांक्षाएं आज उड़ रही है,
सपनों के पंख लगाये.
मन जो आज स्वतंत्र है
मन जो आज स्वच्छ है,
हवा में थिरकती पतंग की डोर जैसे
उडती हुई, पंख लगाये, तूफानों से तेज़
मेरी आकांक्षाएं आज उड़ रही है,
छूना चाहती है, आत्मविष्वास की नीव को,
मेरी आकांक्षाएं आज उड़ रही है.
सपनों को चीर, रस्मो को चीर,
उड़ रही है.
- राम कमल मुख़र्जी
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