Wednesday, September 28, 2011

Safar - Hindi poem

सदियों से चल रहा हूँ

उमीदों की राह में,


दुआओं में गा रहा हूँ


पनाह दो अपनी पनाह में.


राह के पत्थरों से कर ली


मैंने अपनी दोस्ती,


उलझनों में बहती जाती


उम्मीदों की कश्ती.


नयी शाखाओं में देखा,


हरियाली का दास्ताँ.


उलझनों में उलझ गयी है


मेरे मन की रास्ता.


छोटे छोटे छज्जो पे,


नयी धुप की छाओं है.


दूर किसी नदी में बहेती,


कश्माशों की नाव है.


लोथल पोथल लहरों में,


चंचल मन की नीव है,


मुश्किलों के करवटों में,


साहिलों का नीड है.


कदमो की आहटों को सुनती


मैं चला जाता हूँ


बेजुबान भीर में


गीत गुनगुनाता हूँ.


सदियों से चल रहा हूँ में


उमीदों की राह में


कोई नहीं तो खुद ही सही


सुनसान इस सफ़र में.


विश्वास की जड़ को मन मैं लिए


अग्निपथ पे चला जाता हूँ,


हर इंसान की मुस्कुराहटों में,


आज भी, सच्चाई देख पाता हूँ.

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